वांछित मन्त्र चुनें

वि॒दा चि॒न्नु म॑हान्तो॒ ये व॒ एवा॒ ब्रवा॑म दस्मा॒ वार्यं॒ दधा॑नाः। वय॑श्च॒न सु॒भ्व१॒॑ आव॑ यन्ति क्षु॒भा मर्त॒मनु॑यतं वध॒स्नैः ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vidā cin nu mahānto ye va evā bravāma dasmā vāryaṁ dadhānāḥ | vayaś cana subhva āva yanti kṣubhā martam anuyataṁ vadhasnaiḥ ||

पद पाठ

वि॒द। चि॒त्। नु। म॒हा॒न्तः॒। ये। वः॒। एवाः॑। ब्रवा॑म। द॒स्माः॒। वार्य॑म्। दधा॑नाः। वयः॑। च॒न। सु॒ऽभ्वः॑। आ। अव॑। य॒न्ति॒। क्षु॒भा। मर्त॑म्। अनु॑ऽयतम्। व॒ध॒ऽस्नैः ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:41» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:13


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दस्माः) दुःख की उपेक्षा करनेवाले (महान्तः) बड़े श्रेष्ठ जनो ! (ये) जो (वार्य्यम्) स्वीकार करने योग्य सुख और (वयः) जीवन को (चन) भी (दधानाः) धारण करते हुए (सुभ्वः) श्रेष्ठ कर्म्मों में प्रवृत्त होनेवाले हम लोग जो (वः) आप लोगों को (ब्रवाम) कहें, उसके (एवाः) ही (चित्) निश्चय (नु) शीघ्र आप लोग (विदा) जानिये जो (वधस्नैः) ताड़न से स्नान करते अर्थात् पवित्र होते हैं, उनके साथ (क्षुभा) उत्तम प्रकार चलने से (अनुयतम्) अनुकूलता से प्रयत्न करते हुए (मर्त्तम्) मनुष्य को (आ, अव, यन्ति) उत्तम प्रकार प्राप्त होते हैं, उनकी आप लोग शिक्षा करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन शुभ कर्म्म को करें और उपदेश देवें, वैसे ही आप लोग आचरण करो और जो मनुष्य को क्लेश देते हैं, उनको दण्ड दीजिये ॥१३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे दस्मा महान्तो जना ! ये वार्य्यं वयश्चन दधानाः सुभ्वो वयं यद्वो ब्रवाम तदेवाश्चिन्नु यूयं विदा। ये वधस्नैः क्षुभाऽनुयतं मर्त्तमाव यन्ति तान् यूयं शिक्षध्वम् ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विदा) विजानीत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (चित्) अपि (नु) सद्यः (महान्तः) (ये) (वः) युष्मान् (एवाः) (ब्रवाम) वदेम (दस्माः) दुःखोपक्षेतारः (वार्य्यम्) वरणीयं सुखम् (दधानाः) (वयः) जीवनम् (चन) अपि (सुभ्वः) ये शोभनेषु कर्म्मसु भवन्ति (आ) (अव) (यन्ति) गच्छन्ति (क्षुभा) संचलनेन (मर्त्तम्) मनुष्यम् (अनुयतम्) आनुकूल्येन यतन्तम् (वधस्नैः) ये वधेन स्नान्ति पवित्रा भवन्ति ते ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा विद्वांसः शुभकर्माचरेयुरुपदिशेयुश्च तथैव यूयमाचरत ये मनुष्यान् क्षोभयन्ति तान् दण्डयत ॥१३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे विद्वान लोक शुभ कार्य करतात व उपदेश देतात तसे तुम्ही आचरण करा व जे माणसांना क्लेश देतात त्यांना शिक्षा करा. ॥ १३ ॥